सरदार वल्लभ भाई पटेल



सरदार वल्लभ भाई पटेल (; 31 अक्टूबर, 1875 - 15 दिसंबर, 1950) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है।

पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा कृषक परिवार में हुआ था। वे झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्टलभाई उनके अग्रज थे। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया।

बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिये ही उन्हे पहले बारडोली का सरदार और बाद में केवल सरदार कहा जाने लगा।




पटेल के प्रति

यही प्रसिद्ध लोहपुरुष प्रबल,

यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,

हिला इसे सका कभी न शत्रु दल,
पटेल पर
स्वदेश को
गुमान है।
सुबुद्धि उच्च श्रृंग पर किये जगह,
हृदय गंभीर है समुद्र की तरह,
कदम छुए हुए ज़मीन की सतह,
पटेल देश का
निगहबान है।
हरेक पक्ष के पटेल तौलता,
हरेक भेद को पटेल खोलता,
दुराव या छिपाव से इसे गरज ?
कठोर नग्न सत्य बोलता।
पटेल हिंद की नीडर जबान है।

         - हरिवंशराय बच्चन (1950)


 अनमोल प्रेरक विचार


1. इस मिट्टी में कुछ अनूठा है , जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है.
2. यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है. हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है. उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं
3. मेरी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई भूखा ना हो ,अन्न के लिए आंसू बहता हुआ.
4. स्वतंत्र भारत में कोई भी भूख से नहीं मरेगा. इसके अनाज निर्यात नहीं किये जायेंगे. कपड़ों का आयात नहीं किया जाएगा. इसके नेता ना विदेशी भाषा का प्रयोग करेंगे ना किसी दूरस्थ स्थान, समुद्र स्तर से 7000 फुट ऊपर से शाशन करेंगे. इसके सैन्य खर्च भारी नहीं होंगे .इसकी सेना अपने ही लोगों या किसी और की भूमी को अधीन नहीं करेगी. इसके सबसे अच्छे वेतन पाने वाले अधिकारी इसके सबसे कम वेतन पाने वाले सेवकों से बहुत ज्यादा नहीं कमाएंगे. और यहाँ न्याय पाना ना खर्चीला होगा ना कठिन होगा
5. आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये.
6. एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है.
7. चर्चिल से कहो कि भारत को बचाने से पहले इंग्लैण्ड को बचाए.
8. शक्ति के अभाव में विश्वास किसी काम का नहीं है. विश्वास और शक्ति , दोनों किसी महान काम को करने के लिए अनिवार्य हैं.
9. यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत भी गवां दें,और हमारा जीवन बलिदान हो जाए , हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए
10. बेशक कर्म पूजा है किन्तु हास्य जीवन है.जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए. जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है.

अग्रसेन की बावडी, Agrasen ki Baoli history


दिल्ली में अग्रसेन की बावडी एक अद्वितीय और रोचक स्मारक है। शहर की ऊँची और आधुनिक इमारतों से ग्रहणग्रस्त, केवल कुछ ही लोग राष्ट्रीय राजधानी के क्षेत्र में इस ऐतिहासिक सीढीदार कुएं के बारे में जानते हैं। अग्रसेन की बावडी एक ऐतिहासिक स्मारक है जिसकी देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है। कनॉट प्लेस के पास हैली रोड़ पर स्थित यह 15 मीटर चौड़ा और 60 मीटर लंबा कलात्मक सीढीदार कुआँ है। यह सोचा गया कि इसका निर्माण करवाने वाले व्यक्ति के बारे में कोई नहीं जानता परंतु किवदंती है कि इसका निर्माण महाभारत काल के महान राजा अग्रसेन ने करवाया था और अग्रवाल समुदाय के
 सदस्यों द्वारा 14 वीं शताब्दी में इसका पुन:निर्माण करवाया गया। इस कुएं में 103 सीढियां हैं जो आधार की ओर जाती हैं जिनमें किसी समय पानी एकत्रित किया जाता था और जो पाँच भिन्न स्तरों में बना है। अन्य पारंपरिक बावडियां जो अधिकांशतः वृत्ताकार हैं, से अलग यह भिन्न आकार में है जिसका एक सिर उठा हुआ मंच है जिस पर छत है और दूसरे सिरे पर छत नहीं है बल्कि एक नीम के एक बड़े वृक्ष की छाया पड़ती है। आज बावडी में पानी नहीं है परंतु यह कुआँ कई कबूतरों और चमगादडों का घर है। पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत इस स्मारक का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है। 

दुनिया के सात अजूबे | 7 Wonders of the World

दुनिया के नए अजूबे अपने निर्माण और लोगों में लोकप्रियता की वजह से इस मुकाम तक पहुंचे हैं. दुनिया के सात नए अजूबे कुछ इस प्रकार से हैं :




1. क्राइस्ट द रिडीमर (Christ the Redeemer): ब्राजील के रियो डि जनेरियो (Rio de Janeiro, Brazil) में पहाड़ी के ऊपर स्थित 130 फुट ऊंची ‘क्राइस्ट द रिडीमर’ (Christ the Redeemer) अर्थात ‘उद्धार करने वाले ईसा मसीह’ की मूर्ति दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मूर्ति है. यह मूर्ति कंक्रीट और पत्थर से बनाई गई है. यह ईसा मसीह की इस संसार में सबसे बड़ी मूर्ति है. इसका निर्माण 1922 से 1931 के बीच हुआ. यह बहुत ही नवीन है. रात के समय इसका नजारा अद्वितीय होता है





2. चीन की दीवार (Great Wall of China): चीन ने अपनी सुस्रक्षा के लिए अपनी सभी सीमाओं को एक दीवार से घेर दिया था जिसे चीन की दीवार कहते हैं. यह दीवार 5वीं सदी ईसा पूर्व में बननी चालू हुई थी और 16 वीं सदी तक बनती रही. यह चीन की उत्तरी सीमा पर बनाई गयी थी ताकि मंगोल आक्रमणकारियों को चीन के अंदर आने से रोका जा सके. यह संसार की सबसे लम्बी मानव निर्मित रचना है जो लगभग 4000 मील (6,400 किलोमीटर) तक फैली है. इसकी सबसे ज्यादा ऊंचाई 35 फुट है जो इसे सुरक्षा देती है. यह दीवार इतनी चौड़ी है कि इस पर 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक गश्त लगा सकते हैं.




3. जार्डन का ‘पेट्रा’ (Petra): ऐतिहासिक शहर पेट्रा अपनी विचित्र वास्तुकला के लिए दुनिया के सात अजूबों में शामिल है. यहां तरह तरह की इमारतें है जो लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं और सब पर बेहतरीन नक्काशी की गई है. इसमें 138 फुट ऊंचा मंदिर, नहरें, पानी के तालाब तथा खुला स्टेडियम है. ‘पेट्रा’ जॉर्डन के लिए विशेष महत्व रखता है क्यूंकि यह उसकी कमाई का जरिया है. ‘पेट्रा’ पर्यटन के लिहाज से जॉर्डन के लिए सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है.




4. ताजमहल (Tajmahal): दुनिया में प्यार से प्यारा और खूबसूरत एहसास कुछ नहीं होता. प्यार की इसी खूबसूरती को इमारत की शक्ल दी भारत के मुगल बादशाह शाहजहां ने. शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में ताजमहल बनवाया था. यह 1632 में बना और 15 साल में पूरा हुआ. उसने अपने जीवन के अंतिम दिन कैद में से ताजमहल को देखते हुए बिताए थे. यह खूबसूरत गुंबदों वाला महल चारों तरफ बगीचों से घिरा है. क्षितिज पर इसके ताज के आकार के अलावा कुछ नजर नहीं आता और मुगल शिल्पकला का यह सबसे बढ़िया उदाहरण माना जाता है.





5. रोम का कॉलोसियम (Colosseum of Rome) : यह एक विशाल खेल स्टेडियम है. जिसे लगभग 70 सदी में सम्राट वेस्पेसियन (Vespasian) ने बनाना चालू किया था. इसमें 50,000 तक लोग इकट्‌ठे होकर जंगली जानवरों और गुलामों की खूनी लड़ाइयों के खेल देखते थे. इस स्टेडियम में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते थे. इस स्टेडियम की नकल करना आज तक नामुमकिन है. इंजीनियरों के लिए अब तक यह एक पहेली बना हुआ है.






6. माचू पिच्चू (Machu Picchu): 15वीं शताब्दी में सतह से 2430 मीटर ऊपर यानि एक पहाड़ी के ऊपर बने एक शहर में रहना और उस शहर को बनाना अपने आप में अजूबा ही है. दक्षिण अमरीका में एंडीज पर्वतों के बीच बसा ‘माचू पिच्चू शहर’ पुरानी इंका सभ्यता का सबसे बड़ा उदाहरण है. माना जाता है कि कभी यह नगरी संपन्न थी पर स्पेन के आक्रमणकारी अपने साथ चेचक जैसी बीमारी यहां ले आए जिससे यह शहर पूरी तरह तबाह हो गया.





7. चिचेन इत्जा (Chichen Itza): मेक्सिको में बसी चिचेन इत्जा नामक यह इमारत दुनिया में माया सभ्यता के गौरवपूर्ण काल की गाथा गाती है. उस समय के कुशल कारीगरों की मेहनत को यह इमारत अपने आप में संजोयी हुई है. शहर के बीचोबीच कुकुलकन का मंदिर है जो 79 फीट की ऊंचाई तक बना है. इसकी चार दिशाओं में 91 सीढ़ियां हैं. प्रत्येक सीढ़ी साल के एक दिन का प्रतीक है और 365 वां दिन ऊपर बना चबूतरा है.


RED FORT HISTORY

लाल पत्थरों से बना यह 33 मीटर ऊँचा लाल किला Red Fort पुरानी दिल्ली के शौर्य और मुगलों की वैभव को दर्शाता है | इसकी विशाल दीवारों को 1638 में आक्रमणकारियों से बचने के लिए किया गया | इसका मुख्य द्वार लाहोर गेट वर्तमान भारत का एक गतिवान और प्रतीकात्मक केंद्र बिंदु है जहा पर हर वर्ष स्वंतंत्रता दिवस पर बहुत भारी भीड़ एकत्रित होती है | छत्ता चौक एक गुम्बदाकार वृक्षों से ढका मार्ग है जहा पर पुरानी चीजे बिकती है | Red Fort पर हर शाम को एक साउंड एंड लाइट शो आयोजित होता है जो भारत के इस किले से जुड़े इतिहास को बताता है |

Red Fort नेताजी सुभाष मार्ग पर स्तिथ है और सबसे करीबी मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक है | यह हर सोमवार को बंद रहता है और सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है | Red Fort पर भारतीयों के लिए प्रवेश शुल्क 10 रूपये और विदेशियों के लिए प्रवेश शुल्क 250 रूपये है | यहा पर फोटोग्राफी का कोई पैसा नही है और वीडियोग्राफी का 25 रुपये शुल्क है | Red Fort पर हर शाम 6 बजे लाइट एंड साउंड शो आयोजित होता है जिसमे वयस्कों के लिए 80 रूपये और बच्चो के लिए 30 रूपये शुल्क है

बादशाह शाहजहा ने लाल किले Red Fort का निर्माण 1638 में करवाया जब उसने अपनी राजधानी आगरा से दिल्ली परिवर्तित की | वास्तविकता में लाल और सफ़ेद बादशाह के पसंदीदा रंग थे और इसकी डिजाईन का श्रेय वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी को जाता है जिसने ताज महल की डिजाईन भी बनायी थी | यह किला यमुना नदी के समानांतर बना हुआ है | इस किले का निर्माण कार्य मुहर्रम के पवित्र महीने में शुरू हुआ और शाह जहा की देखरेख में 1648 में खत्म हुआ |

Red Fort की जगह मध्ययुगीन भारत में शाहजाह्बाद थी जो वर्तमान में पुरानी दिल्ली है | इसकी योजना और सौंदर्यशास्त्र शाहजहा के शाषनकाल में मुगल रचनात्मकता के चरम सीमा के दौरान बना | उसके वंशज औरंगजेब ने बादशाह के निजी निवास में मोतीयो से बनी मस्जिद ओर बनाई | मुगल साम्राज्य में औरंगजेब के बाद प्रशासनिक और वित्तीय संरचना कमजोर हो गयी और 18वी सदी में इस किले का पुनरोदय हुआ |   जब 30 वर्षो तक लाल किला जब बिना किसी बादशाह के  रहा तब जहांदार शाह ने 1712 में इस किले को पदभार संभाल लिया | उसके एक वर्ष के शाषनकाल के बाद उसकी हत्या हो गयी और फारूखसियार ने बागडोर संभाली |
पैसे जुटाने के लिए इस काल में रंग महल में चांदी की छत को ताम्बे में बदल दिया गया | मुहम्मद शाह ने कला में रूचि दिखाते हुए 1719 में इस किले का पदभार संभाल लिया |1739 में फारसी बादशाह नादिर शाह ने मुगल सेना को आसानी से पराजित कर दिया और Red Fort लाल किले सहित मयूर सिंहासन को भी लूट लिया | नादिर शाह 3 महीने बाद नष्ट शहर और कमजोर मुगल बादशाह को छोडकर फारस चला गया | मुगलों ने अपने आप को  कमजोर देखते हुए 1752 में मराठो के साथ संधि करते हुए उन्हें दिल्ली के सिंहासन का रक्षक बना दिया | 1758 में लाहोर और पेशावर पर विजय प्राप्त करने से अहमद शाह दुर्रानी से उनका संगर्ष हो गया | 1760 में मराठो ने दुर्रानी के खिलाफ युद्ध करने के लिए दीवाने खास की चांदी की छत को पिघलाकर  धन जुटाया |
मराठा पानीपत के तीसरे युद्ध में पराजित हो गये और दिल्ल्ली पर दुर्रानी का कब्ज़ा हो गया | इसके दस वर्ष बाद मराठो के सहयोग से शाह आलम फिर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा | 1783 में सिख महासंघ के करोडीसिंघिया ने बाघेल सिंह धालीवाल के नेतृत्व में दिल्ली और लाल किले Red Fort पर कब्जा कर लिया | सिखों ने शाह आलम को बादशाह रहने दिया और मुगलों को इस शर्त पर दिल्ली पर राज करने को कहा अगर वो दिल्ली में सिख गुरुओ के लिए सात गुरद्वारे बनाये |
1803 में दुसरे अंग्रेज मराठा युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मराठो को हरा दिया और दिल्ली के लाल किले पर कब्जा कर लिया | अंग्रेजो ने मुगलों के सारे प्रदेश छीन लिए और लाल किले पर निवास स्थान बनाया | इस Red Fort लाल किले पर राज करने वाला अंतिम शाषक बहादुर शाह द्वितीय था जिसने 1857 की क्रांति में अंग्रेजो के खिलाफ लडाई की थी लेकिन लाल किले को अंग्रेजो से नही बचा पाए | बहादुर शाह द्वितीय के विद्रोह में हार जाने के बाद अंग्रेज सेना ने बहादुर शाह को गिरफ्तार कर लिया | उसे 1858 में अंग्रेज लाल किले में बंदी बनाकर लाये और उसी वर्ष रंगून भेज दिया |

मुगल शाषन के अंत के बाद अंग्रेजो ने इस किले की कई मूल्यवान वस्तुए लुट ली | सारे फर्नीचर को हटाकर तबाह कर दिया और हरम का कमरा , नौकरों के कमरे और बगीचे को तबाह कर दिया और पत्थरों की बैरक बनवा दी |केवल पूर्व दिशा में स्तिथ संगमरमर की बनी शाही इमारत को छोडकर सब तबाह कर दिया | अंग्रेजो ने इस किले के दो तिहाई हिस्से को तबाह कर दिया | 1899 से 1905 के बीच लार्ड कर्जन ने इस किले की मरम्मत करा दीवारों का पुनर्निर्माण करवाया और बाग़ को भी फिर से तैयार करवाया |
नादिर शाह के आक्रमण के दौरान इस किले के कई जवाहरातो और कलाकृतियों को लुट लिया गया | इसके बाद 1857 की क्रांति में हार के बाद इस किले के कई वस्तुए ब्रिटिश म्यूजियम में भेज दिया गया जैसे कोहिनूर हीरा , शाहजहा का शराब का प्याला और बहादुर शाह का ताज अभी भी लन्दन में है | कई बार भारत सरकार ने इन चीजो को भारत लौटने को कहा लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मना कर दिया | 1911 में ब्रिटिश राजा  और रानी दिल्ली दरबार देखने आये जिसमे कुछ इमारतो को सुधारा गया | भारतीय सेना के कई अफसरों का लाल किले में कोर्ट मार्शल किया गया |
15 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने Red Fort लाल किले के लाहोर गेट से तिरंगा लहराया | इसके बाद से हर स्वन्त्रन्ता दिवस पर प्रधानमंत्री इस किले पर तिरंगा लहराते है और देश को संबोधित करते है | भारत के स्वन्त्रत होने के बाद इस जगह में कुछ बदलाव हुए और लाल किले Red Fort को सैनिक छावनी बना दिया | इसके कई हिस्से 2003 तक भारतीय सेना के अधीन रहे और इसके आबाद भारतीय पुरातत्व विभाग को इसकी मरम्मत करने के लिए दे दिया गया |


स्वामी विवेकानंद (vivekananda quotes)








सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है: वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता, पूर्ण रूप से निस्स्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल है


जो अग्नि हमें गर्मी देती है , हमें नष्ट भी कर सकती है ; यह अग्नि का दोष नहीं है 

बस वही जीते हैं ,जो दूसरों के लिए जीते हैं

शक्ति जीवन है , निर्बलता मृत्यु है . विस्तार जीवन है , संकुचन मृत्यु है . प्रेम जीवन है , द्वेष मृत्यु है 

शारीरिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी कमजोर बनता है – , उसे ज़हर की तरह त्याग दो 

ना खोजो ना बचो , जो आता है ले लो

हम जो बोते हैं वो काटते हैं . हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं . हवा बह रही है ; वो जहाज जिनके पाल खुले हैं , इससे टकराते हैं , और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं ,

एक समय में एक काम करो , और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ 

मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं . जब वो केन्द्रित होती हैं ; चमक उठती हैं . 



कुछ मत पूछो , बदले में कुछ मत मांगो . जो देना है वो दो ; वो तुम तक वापस आएगा , पर उसके बारे में अभी मत सोचो

जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे . यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो , तुम कमजोर हो जाओगे ; अगर खुद को ताकतवर सोचते हो , तुम ताकतवर हो जाओगे

जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो . सोचो , तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं

आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं



कुछ सच्चे , इमानदार और उर्जावान पुरुष और महिलाएं ; जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं

यह भगवान से प्रेम का बंधन वास्तव में ऐसा है जो आत्मा को बांधता नहीं है बल्कि प्रभावी ढंग से उसके सारे बंधन तोड़ देता है

खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है

तुम फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के 

हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें ; और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें .

जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं , जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा – उसी क्षण

एक विचार लो . उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो , उस विचार को जियो . अपने मस्तिष्क , मांसपेशियों , नसों , शरीर के हर हिस्से को उस विचार में
जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है

तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है . कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता , कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता . तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है .

यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता , तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता 

ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं. वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!



Qutub Minar History

क़ुतुब मीनार (Qutub Minar) भारत के दिल्ली के महरौली में स्थित है। क़ुतुब मीनार को ‘ कार्य क़ुतुब दिन ऐबक ‘ 12 वीं सतवादी में बनवाया था। यह मीनार पत्थर से बनी सबसे ऊंची दीवार है।


क़ुतुब मीनार (Qutub Minar) की ऊंचाई 72. 5 मीटर यानी के 237. 85 फीट ऊंची है।  क़ुतुब मीनार का लाल रंग के पत्थर से निर्माण कराया गया था ।

माना गया है के ‘ कार्य क़ुतुब दिन ऐबक ‘ ने क़ुतुब मीनार की केवल एक मंजिल ही बनवाई थी इसके आगे का काम इसके उतराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा कराया था।

इस मीनार की दीवारों पर चारों तरफ कुरान की पवित्र लाईनें अंकित की गई हैं।

दावा किया जाता है के यो समग्री क़ुतुब मीनार को बनाने में की गई थी वह हिन्दू मन्दिरों को तोड़ कर बनाई गई थी परन्तु मीनार में यह लिखा है के कुतुब्दीन ने इन मंदिरों को तोडा था ना के इनसे मीनार बनाई थी।

Qutub Minar  के सिखर पर जाने के लिए तकरीवन 389 सीढियाँ बनवाई गई थी । कुतुब मीनार का निचले हिस्से का व्यास 14. 3 मीटर है यो उपर जाते – जाते केवल 2. 7 मीटर ही रह जाता है।

सन 1505 ई : में भूचाल आने के कारन क़ुतुब मीनार की दो मंजिलो को नुक्सान हुआ था इसके बाद सिकंदर लोदी ने इसको ठीक करवाया था।

रोजाना दुनियाभर से बहुत सारे पर्यटक भारत की इस इतिहासिक मीनार को देखने के लिए आते हैं।

परन्तु हिन्दुयों के अनुसार वरामिहिर यो एक खगोलशास्त्री थे उसने इस मीनार को बनवाया था जिसका नाम वस्तु स्तंभ रखा गया 

Raj ghat (राज घाट)

राज घाट को किसी विशेष प्रस्तावना की जरूरत नहीं है। यह महात्मा गाँधी का समाधि स्थल है जिसे 31 जनवरी 1948को उनकी हत्या के उपरान्त बनाया गया था। इस स्थान के महत्व का पता इस बात से चलता है कि भारत आये किसी भी प्रवासी प्रतिनिधि मण्डल को राजघाट आकर पुष्पाँजलि समर्पित करना और महत्मा गाँधी को सम्मान देना अनिवार्य रहता है। राज घाट यमुना नदी के किनारे महात्मा गाँधी मार्ग पर स्थित है।

राजघाट की वास्तु कला

स्मारक को वानु जी भुटा द्वारा डिज़ाइन किया गया है और स्थापत्य कला को दिवंगत नेता के अनुकरण में 'सरल' रखा गया है। हालाँकि निर्माण के उपरान्त स्मारक में कई बदलाव किये जा चुके हैं।


विशेषता

यह दिल्ली का सबसे लोकप्रिय आकर्षण है और प्रतिदिन हजारों पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। यह स्मारक काले संगमरमर की बनी एक वर्गाकार संरचना है जिसके एक किनारे पर तांबे के कलश में लगातार एक मशाल जलती रहती है। इसके चारों ओर कंकड़युक्त फुटपाथ और हरे-भरे लॉन हैं और स्मारक पर 'हे राम' गुदा हुआ है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि महात्मा के ये अन्तिम शब्द थे। मृत्यु से पहले गांधीजी के अंतिम शब्द ‘हे! राम’ थे, जो उनकी समाधि पर अंकित हैं।

अन्य समाधियाँ

गाँधी जी के समाधि स्थल के पास भारत पर शासन करने वाले कई अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञों के स्मारक स्थित हैं। इनमें जवाहरलाल नेहरू का शाँतिवन, लाल बहादुर शास्त्रीका विजयघाट, इन्दिरा गाँधी का शक्ति स्थल, ज्ञानी जैल सिंह का एकता स्थल और राजीव गाँधी की वीर भूमिशामिल हैं।[1]

अन्तिम संस्कार

गांधीजी दिल्ली में 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे, तब नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी। यह वही पवित्र स्थान है, जहां गांधी जी का अंतिम संस्कार किया गया था।

विदेशी विशेष व्यक्ति

समाधि के पास कई पेड़ लगे हुए हैं, जिन पर उन विदेशियों के नाम लिखे हुए हैं, जो राजघाट देखने आए। जैसे कि ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन, पूर्व आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री राफ टिडरमैन के नाम यहां देख सकते हो।

गांधी स्मारक संग्रहालय

राजघाट में गांधी स्मारक संग्रहालय भी है, जिसमें गांधी जी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं और उनके सर्वोदय आंदोलन को फिल्म द्वारा दिखाया गया है। यह फिल्म प्रत्येक रविवार को 3 बजे हिंदी में और 5 बजे अंग्रेज़ी में दिखाई जाती है।[2]

सांस्कृतिक कार्यक्रम

हर शुक्रवार को यहां स्मारक समारोह होते हैं और हर साल 2 अक्तूबर (जन्म दिवस) और 30 जनवरी (निधन) पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

इंडिया गेट का इतिहास

मूल रूप से अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के रूप में जाने जाने वाले इस स्मारक का निर्माण अंग्रेज शासकों द्वारा उन 82000 भारतीय सैनिकों की स्मृति में किया गया था जो ब्रिटिश सेना में भर्ती होकर प्रथम विश्वयुद्ध और अफ़ग़ान युद्धों में शहीद हुए थे। यूनाइटेड किंगडम के कुछ सैनिकों और अधिकारियों सहित 13300 सैनिकों के नाम, गेट पर उत्कीर्ण हैं, लाल और पीले बलुआ पत्थरों से बना हुआ यह स्मारक दर्शनीय है।


जब इण्डिया गेट बनकर तैयार हुआ था तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी। जिसे बाद में ब्रिटिश राज के समय की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित कर दिया गया। अब जार्ज पंचम की मूर्ति की जगह प्रतीक के रूप में केवल एक छतरी भर रह गयी है।


1971 में बांग्लादेश आज़ादी युद्ध के समय काले मार्बल पत्थरो के छोटे-छोटे स्मारक व छोटी-छोटी कलाकृतियाँ बनाई गयी थी। इस कलाकृति को अमर जवान ज्योति भी कहा जाता है क्योकि 1971 से ही यहाँ भारत के अकथित सैनिको की कब्र बनाई हुई है।

Happy Diwali

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाऍं
दीपावली में दीपों का दीदार हो,
और खुशियों की बौछार हो।।


श्री राम जी आपके संसार में
सुख की बरसात करें, और दुखों का नाश करें,
प्रेम की फुलझड़ी से आपका घर आंगन रौशन हो
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

दीप जलते जगमगाते रहें,
हम आपको, आप हमें याद आते रहें,
जब तक जिंदगी है, दुआ है हमारी कि,
आप चाँद की तरह जगमगाते रहें,
दिवाली की ढेरों शुभकामनाएं!

Valmiki. महर्षि वाल्मीकि के 7 अमूल्य विचार जानिए...

महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की राह दिखाई। पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है।


जानिए क्या कहते हैं महर्षि वाल्मीकि के अनमोल वचन...

* किसी भी मनुष्य की इच्छाशक्ति अगर उसके साथ हो तो वह कोई भी काम बड़े आसानी से कर सकता है। इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना देती है।


*  जीवन में सदैव सुख ही मिले यह बहुत दुर्लभ है।  

* दुख और विपदा जीवन के दो ऐसे मेहमान हैं, जो बिना निमंत्रण के ही आते हैं।

*  माता-पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन जैसा दूसरा धर्म कोई भी नहीं है।

* संसार में ऐसे लोग थोड़े ही होते हैं, जो कठोर किंतु हित की बात कहने वाले होते है।


* इस दुनिया में दुर्लभ कुछ भी नहीं है, अगर उत्साह का साथ न छोड़ा जाए।

* अहंकार मनुष्य का बहुत बड़ा दुश्मन है। वह सोने के हार को भी मिट्टी का बना देता है।

महात्मा गांधी vs भगत सिंह

क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को बचाने का प्रयास किया था? उपरोक्त प्रश्न प्राय: समय-समय पर उठता रहा है। बहुत से लोगों का आक्रोश रहता है कि गांधी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया।

भगत सिंह स्वयं किसी प्रकार की क्षमा याचना नहीं चाहते थे और उनका दृढ़ विश्वास था कि उनकी शहीदी देश के हित में होगी लेकिन प्रश्न यह है कि गाँधी ने क्रांतिकारियों को बचाने का प्रयत्न किया या नहीं!
वास्तव में हम अधिकतर ऐसे वाद-विवादों को जन्म देते हैं जिनकी हमें जानकारी नहीं होती। ना हमने गांधी को पढ़ा होता, न भगत सिंह को फिर भी वाद-विवाद किया करते हैं।
गांधी ने 23 मार्च, 1931 को वायसराय को एक निजी पत्र में इस प्रकार लिखा था-
"१ दरियागंज, दिल्ली
२३ मार्च, १९३१
प्रिय मित्र,
आपको यह पत्र लिखना आपके प्रति क्रूरता करने-जैसा लगता है; पर शांति के हित में अंतिम अपील करना आवश्यक है। यद्यपि ‍‌आपने मुझे साफ-साफ बता दिया था कि भगतसिंह और अन्य दो लोगों की मौत की सज़ा में कोई रियायत किए जाने की आशा नहीं है, फिर भी आपने मेरे शनिवार के निवेदन पर विचार करने को कहा था। डा सप्रू मुझसे कल मिले और उन्होंने मुझे बताया कि आप इस मामले से चिंतित हैं और आप कोई रास्ता निकालने का विचार कर रहे हैं। यदि इसपर पुन: विचार करने की गुंजाइश हो, तो मैं आपका ध्यान निम्न बातों की ओर दिलाना चाहता हूँ।
जनमत, वह सही हो या गलत, सज़ा में रियासत चाहता है। जब कोई सिद्धांत दाँव पर न हो, तो लोकमत का मान करना हमारा कर्तव्य हो जाता है।
प्रस्तुत मामले में स्थिति ऐसी होती है। यदि सज़ा हल्की हो जाती है तो बहुत संभव है कि आंतरिक शांति की स्थापना में सहायता मिले। यदि मौत की सज़ा दी गई तो निःसंदेह शांति खतरे में पड़ जाएगी।
चूँकि आप शांति स्थापना के लिए मेरे प्रभाव को, जैसे भी वह है, उपयोगी समझते प्रतीत होते हैं। इसलिए अकारण ही मेरी स्थिति को भविष्य के लिए और ज्यादा कठिन न बनाइए। यूँ ही वह कुछ सरल नहीं है।
मौत की सज़ा पर अमल हो जाने के बाद वह कदम वापस नहीं लिया जा सकता। यदि आप सोचते हैं कि फ़ैसले में थोड़ी भी गुंजाइश है, तो मैं आपसे यह प्रार्थना करुंगा कि इस सज़ा को, जिसे फिर वापस लिया जा सकता, आगे और विचार करने के लिए स्थगित कर दें।
यदि मेरी उपस्थिति आवश्यक हो तो मैं आ सकता हूँ। यद्यपि मैं बोल नहीं सकूंगा, [महात्मा गांधी उस दिन मौन पर थे] पर मैं सुन सकता हूँ और जो-कुछ कहना चाहता हूँ, वह लिखकर बता सकूँगा।
दया कभी निष्फल नहीं जाती।
मैं हूँ,
आपका विश्वस्त मित्र

[अँग्रेज़ी (सी. डब्ल्यू ९३४३) की नकल]

Ashfaqullah Khan - निर्भय क्रांतिकारी अशफ़ाक उल्ला खान

अशफ़ाक उल्ला खां का जीवन परिचय

अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफ़ाक उल्ला खां ना सिर्फ एक निर्भय और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे. पठान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. अशफ़ाक उल्ला खां ने स्वयं अपनी डायरी में यह लिखा है कि जहां उनके पिता के परिवार में कोई भी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सका वहीं उनके ननिहाल में सभी लोग उच्च-शिक्षित और ब्रिटिश सरकार के अधीन प्रमुख पदों पर कार्यरत थे. चार भाइयों में अशफ़ाक सबसे छोटे थे. इनके बड़े भाई रियायत उल्ला खां, राम प्रसाद ‘`बिस्मिल`‘ के सहपाठी थे. जिस समय अंग्रेजी सरकार द्वारा बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया था, तब रियायत, अपने छोटे भाई अशफ़ाक को उनके कार्यों और शायरी के विषय में बताया करते थे. भाई की बात सुनकर ही अशफ़ाक के भीतर राम प्रसाद बिस्मिल से मिलने की तीव्र इच्छा विकसित हुई. लेकिन इस समय इसका कारण सिर्फ शायरी था. आगे चलकर दोनों के बीच दोस्ती का गहरा संबंध विकसित हुआ. अलग-अलग धर्म के अनुयायी होने के बावजूद दोनों में गहरी और निःस्वार्थ मित्रता थी. 1920 में जब बिस्मिल वापिस शाहजहांपुर आ गए थे, तब अशफ़ाक ने उनसे मिलने की बहुत कोशिश की, पर बिस्मिल ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. वर्ष 1922 में जब असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई तब बिस्मिल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाओं में भाग लेकर अशफ़ाक उनके संपर्क में आए. शुरूआत में उनका संबंध शायरी और मुशायरों तक ही सीमित था. अशफ़ाक उल्ला खां अपनी शायरी सबसे पहले बिस्मिल को ही दिखाते थे.

राम प्रसाद बिस्मिल से दोस्ती

चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे. अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे. उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए. इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए. आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे. धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था. यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई.

काकोरी कांड

जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई. इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी. लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी. इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया. उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई. 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा.

काकोरी कांड में फांसी

जब अंग्रेजी सरकार को क्रांतिकारी गतिविधियों से भय लगने लगा तो उन्होंने बिना सोचे-समझे क्रांतिकारियों की धर-पकड़ शुरू कर दी. इस दौरान राम प्रसाद बिस्मिल अपने साथियों के साथ पकड़े गए लेकिन अशफ़ाक उल्ला खां उनकी पकड़ में नहीं आए. पहले वह बनारस गए और फिर बिहार जाकर लगभग दस महीने तक एक इंजीनियरिंग कंपनी में कार्य करते रहे. वे लाला हर दयाल से मिलने के लिए देश से बाहर भी जाना चाहते थे. इसीलिए वह अपने दोस्त के पास दिल्ली आ गए ताकि यहां से विदेश जाने का रास्ता ढूंढ पाएं. लेकिन उनके दोस्त ने उनके साथ विश्वासघात कर पुलिस को उनकी सूचना दे दी. पुलिस ने अशफ़ाक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल अधिकारी तसद्दुक हुसैन ने धर्म का सहारा लेकर बिस्मिल और अशफ़ाक की दोस्ती तोड़ने की कोशिश की, पर इससे कोई लाभ हासिल नहीं हुआ. अशफ़ाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में रखकर कड़ी यातनाएं दी गईं. काकोरी कांड में चार लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई जिनमें राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खां शामिल थे. 19 दिसंबर, 1927 को एक ही दिन एक ही समय लेकिन अलग-अलग जेलों (फैजाबाद और गोरखपुर) में दो दोस्तों, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खां, को फांसी दे दी गई.

अशफ़ाक उल्ला खां एक बहुत अच्छे कवि थे. अपने उपनाम वारसी और हसरत से वह शायरी और गजलें लिखते थे. लेकिन वह हिंदी और अंग्रेजी में भी लिखते थे. अपने अंतिम दिनों में उन्होंने कुछ बहुत प्रभावी पंक्तियां लिखीं, जो उनके बाद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए मार्गदर्शक साबित हुईं.

किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाए, ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना; मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं, जबां तुम हो, लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना।

जाऊंगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा? बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊंगा, फिर आऊंगा,फिर आकर के ऐ भारत मां तुझको आज़ाद कराऊंगा". जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ, मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूं; हां खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूंगा, और जन्नत के बदले उससे यक पुनर्जन्म ही माँगूंगा