फ़र्ज़ और बलिदान ~ part (2) भारतीय सेना के अदम्य साहस की कहानी!

ये सुनकर कैप्टन भरत तिवारी ने कहा सर लेकिन गिनती के 250 जवान, 1 मेजर, 1 कप्तान, 2 लेफ्टिनेंट और 3 सूबेदार, बन्दूकों के नाम पर पुरानी जंग लगी राइफलें, न तो तो तोपखाना, न मोर्टार, न माउन्टेन बैटरी ! हमें पीछे हटकर इंतज़ार करना चाहिए मदद का ।
मेजर- "कैप्टन! तुम्हारी बात में दम है लेकिन तुम पीछे हटोगे तो कहाँ हटोगे?
पीछे दौलत बेग ओल्दी में आये बर्फ़ के तूफान में ?
दक्षिण का दमचौक व जरला क्षेत्र का बेस कैम्प भी यहाँ से 100 मील दूर है। आर्टिलरी और मोर्टार छोड़ो यहाँ सैनिकों की ताजी कुमुक भी नहीं आ पाएगी ।
और मुझे विश्वास है की तुम बर्फ़ के तूफ़ान में दब कर मरने, या पीठ पर गोली खाने के बजाय 50चीनीयों को मार कर शहीद कहलाना पसन्द करोगे ।"
भरत- "यस सर !"
भरत ने मुड़ कर आवाज लगाई तो लेफ्टिनेंटकृष्णकांत और हरी सिंह, सूबेदार मेजर राम सिंह और नायब सूबेदार रामचन्द्र देशमुख के साथ250 सैनिक कतार में खड़े थे।
भरत ने ओजपूर्ण लहजे में कहना शुरू किया;
" मेरे जवानों! हमले की तैयारी की जाये, समय बिल्कुल भी नहीं है । बर्फ के तूफ़ान में दबकर मरने से अच्छा है हम शौर्य प्रकट करें ।
[ads-post] याद रखना "योग में लीन योगी औरयुद्धभूमि में लड़ता योद्धा मृत्यु के बाद भी सूर्यमण्डल को भेद देते हैं ।
ईस 200 साल पुरानी रेजिमेंट ने कभी हार का मुँह नहीं देखा है । हमने या तो विजय प्राप्त की है, या अपना बलिदान दिया है। सर्वत्र विजय है हमारा ध्येय, ये वाक्य, याद रखना।
भरत ने भाषण खत्म होने के बाद कहा कोई सवाल ...?
जवानों ने एक स्वर में कहा, "नो सर!"
भरत- जय हिन्द ।
और 250 जवानों की गगन भेदी आवाज गूंजी, "जय हिन्द" !
भरत ने कहा डिसमिस और सैनिक तैयारियों में जुट गए ।
शाम घिर आई थी अब तक, सूबेदार मेजर राम सिंह ने आकर भरत को सैल्यूट किया और बोले जय हिन्द सर ।
भरत- जय हिन्द सूबेदार साब! तैयारी कैसी है आपकी ?
राम सिंह- कप्तान साब, तैयारियां चाक-चौबंद हैं,हरी और कृष्णकांत साब अपने गश्ती दल के साथ अभी लौटे नहीं हैं ।
आप एक बार मोर्चे का निरीक्षण कर लें तो बेहतर होगा ।
भरत राम के साथ गया और मोर्चेबंदी को देख कर लौट आया ।
रात घिर आई थी, कृष्णकांत और हरी थके-माँदे गांफिल पड़े थे अपने दल के साथ । भोजन तैयार हो रहा था और बाकी जवान अपनी- अपनी जगह सतर्क और सीमा पर आँख गड़ाये बैठे थे।
भरत ने अपने कम्पनी कमांडर की ओर देखा और बोला सर जी! पता नहीं क्यों ? कुछ अनिष्ट की आशंका हो रही है ।
परिस्थितियाँ बिल्कुल अनुकूल नहीं हैं इस बार। चीन ने बड़ी तैयारी से हमला किया है वरना गुरखा रेजिमेंट को पीछे हटना पड़ा; विश्वास नहीं होता ।
मेजर ने एक नजर कप्तान पर डाली फिर जलती आग की ओर देखते हुए बोले -"मैंने विश्वयुद्ध देखा है कैप्टन । 1942 में इसी राजपूताना राईफल्स मेंकमीशन मिला था मुझे 2nd लेफ्टीनेंट की रैंक पर जर्मन सेना की सबसे खतरनाक और शक्तिशालीSS- बटालियन को रौंद कर रख दिया था मैंने। न जाने कितने जर्मनों को यमलोक भेजा है ।
परिस्थितियाँ यहाँ से भी खराब थीं । गोलियाँ खत्म होने पर संगीनों के सहारे लड़ाई लड़ी है । लगता था की बस अंत आज ही है लेकिन हर बार विजय मिलती और बच जाता। ब्रिटिश अफसर तक कायल थे मेरी बहादुरी के, न जाने कितने देसी-विदेशी सैनिकों और अधिकारियों की प्राण रक्षा मैंने की है" ।
विश्वयुद्ध समाप्त हुआ 1945 में और ठीक 3 साल बाद कश्मीर में पाकीयों को दौड़ा-दौड़ा कर मारने
पर वीर चक्र मिला और आज इन अफीमची चीनियों की बारी है ।
परिणिता मेरे मन मेँ बड़ी गहराई तक रची बसी थी और मैँ उसका शव देख जड़ रह गया था।छोटी बहन  और भाईसाहब ने कई रिश्ते देखे पर मैँ न माना।
कैसे मैँ भूल जाता परिणिता को? उसके लहुलुहान शव को? कैसे कैप्टन कैसे?
कहते-कहते मेजर का गला रुंध गया।भरत ने मेजर के कंधे पर हाथ रख कर कहा सॉरी सर।
मेजर ने अपनी नम आखेँ पोंछी और भरत से पूछा तुम बताओ तुम्हारी शादी हुई या नहीँ?
भरत बोला हो गई है सर! और फिर सकुचाते हुए बोला मधुरिमा मिश्र से मधुरिमा तिवारी बनाने  मेँ बड़े पापड़ बेलने पड़े|
मेजर ने हंसते हुए कहा अच्छा तो मेरे सेकेण्ड इन कमाण्ड को पापड़ बेलना भी आता है। मैँने सोचा तुम
केवल अचूक निशाना लगाने और फौजी कमाण्ड देने के अलावा बिलकुल बेकार हो!
मेजर ने फिर पूछा और बच्चे?
भरत ने जरा यादोँ मेँ खोकर कहा सर एक बच्ची है6 माह की; कृति नाम है और मैँने तो अभी उसे देखा
भी नहीँ है, यहां से लौटूंगा तभी भेँट होगी।
बातोँ का सिलसिला चलता रहा और अगली सुबह घिर आयी।
अगला दिन 21 Oct. 1962
पूरी तरह शान्त रहा जैसे तूफान आने के पहले समुद्रशान्त हो। पूरा दिन बीतने के बाद 22 Oct. को रात12.15 पर हमला हुआ।
चीन की पूरी एक ब्रिगेड ने घातक हथियारोँ के साथ हमला किया था।
कम्पनी कमाण्डर ने फायरिँग के आदेश दिये और राजपूताना राईफल्स के वारक्राई राजा रामचंद्र की जय की गगनभेदी गूँज के बाद सैनिको ने फायरिँग शुरु कर दी।
पैदल चीनी आगे बढ़ते और गोली खाकर गिरपड़ते, लेकिन कब तक? धीरे-धीरे कारतूस लगभग खत्म हो गये तो भरत ने फायरिँग धीमी करने के आदेश दिये जिससे बेवजह कारतूस जाया न होँ। उधर चीनी कमाण्डर ने भी भांप लिया की दुश्मन की बंदूके खाली है और उसने पूरी ब्रिगेड को एक साथ झोँक दिया।
भरत ने फिर फायरिँग शुरु कर दी और वातावरण सैनिकोँ की चीखोँ, बारुद की गंध और गोलियोँ की आवाज से फिर से भयावह हो गया था धरती रक्त से लाल हुई जाती थी लेकिन मशीनगनोँ के आगे3नाटॅ3 की राईफल कब तक टिकती? कुछ की बंदूके खराब हो गई थी तो कुछ के कारतूस खत्म हो गये थे। अचानक एक ग्रेनेड कैम्प मेँ गिरा और जोरदार धमाके के साथ कम्पनी कमाण्डर मेजरवीरभद्र सिँह शहीद हो गये थे ।
भरत की आंखो मेँ आसूं आ गये थे। उसने देखा राम सिँह मृत पड़े थे।लेफ्टिनेँट हरि कृष्णकांत को  फर्स्टएड दे रहे थे की कारबाईन की 7-8 गोलियाँ उनके सीने मेँ धंसती चली गईँ  और  वह वहीँ जमीनपर गिर गये।
भरत की बंदूक मेँ बुलेट फंस गई थी, वह झल्ला उठा था। आस-पास देखा तो 20 कदम पर हरी की राइफल पड़ी थी। भरत बड़ी सतर्कता से कोहनी के बल रेंगकर गया और बंदूक लेकर लौटने के बाद जैसे ही अपनी पोजिशन पर चढ़ना चाहा 3-4गोलियाँ उसके पेट और जांघो मेँ आ लगीँ।
भरत कुछ पल दम साधे पड़ा रहा फिर साहस बटोर रेत की बोरी पर चढ़कर गोली चलानी शुरु की लेकिन 5-7 फायर के बाद मैगजीन खाली हो गई थी।उसने देखा तो बैग मेँ 2 ग्रेनेड बाकी थे । चौकी पर तैनात सारे जवान शहीद हो चुके थे और चीनी लेफ्टिनेंट सबसे आगे सैनिकों को लिए बढ़ता आ रहा था ।
भरत के मुँह से खून निकल रहा था। उसने कोहनी से होंठ पोंछे, रक्तरंजित होंठो पर क्रोधयुक्त विजयी मुस्कान दौड़ गयी। उसने ग्रेनेड हाथों में लिया और इंतज़ार करने लगा । जब चीनी कमांडर  4-5 कदम दूर था तभी भरत ने ग्रेनेड की सेफ्टीपिन खींच कर अपने जैकेट में डाल ली और एक बार फिर राजपूताना के वार क्राईराजा रामचन्द्र की जय कहकर सीधा चीनी सैनिक अधिकारी पर कूद पड़ा । 
भरत के अचानक छलाँग लगाने से कोई कुछ समझता इसके पहले वह कमांडर को अपने  मजबूत हाथों में पकड़े जमीन पर गिर पड़ा। बाकी चीनी जवान पहले तो हड़बड़ा कर पीछे हटे लेकिन अपने अधिकारी को भरत के हाथों में जकड़ा देख भरत के ऊपर बन्दूक की बट से मारना शुरू किया और ईधर भरत आँखे बन्द किये दम साधे गिन रहा था 22, 23, 24........
उसके मन में एक-एक कर शहीद मेजर, हरी सिंह और अन्य जवानों की तस्वीरें आ-जा रहीं थीं । उसने गिना 26, 27.......उसके मन में हूक सी उठी और याद आई मधुरिमा; उसकी दिल जीत लेने वाली हंसी, उसने गिना 28, 29.......उसे याद आई कृति की; उसकी 6 महीने की बेटी जिसे उसने अभी देखा ही नहीं था, उसके जन्म के 4 महीने पहले ही तो वह लौट आया था ड्यूटी पर।
भरत का चेहरा पत्थर की तरह सख़्त हो चुका था। उसने गिना  30 और एक साथ 2 धमाकों में भरत के साथ 8-10 चीनी सैनिकों के चिथड़े उड़ गए। दरअसल हैण्डग्रेनेड की सेफ्टीपिन निकले 30सेकेंड पूरे हो चुके थे ।
(समाप्त

No comments:

Post a Comment